Thursday, July 23, 2015

आओ मिलकर करें बैंक की नौकरी, बुजदिलों के भी दिन खुद ही लद जायेंगे,




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बैंकों में कुछ नेताओं की खातिर उपजे हालात से कौन वाकिफ नहीं है | आज हालात ये हैं जहां बैंक में कार्यरत कर्मचारी अधिकारी जो कभी अपनी अच्छी सेलरी के लिए जाने जाते थे और सरकारी नौकरों से सेलरी में अच्छे स्तर पर थे वो आज उनके यहाँ कार्यरत चपड़ासी के स्तर पर पहुँच गया | ये स्तर क्यूँ पहुंचा ? कसूर सरकार का नहीं है ? गिला सरकार से नहीं न ही सरकारी कर्मचारी से है | खुदा करे उनकी और भी तरक्की हो | गिला हमें अपने लोगों से है जो हमारी इस हालात के ज़िम्मेदार हैं | आइये एक गीत के माध्यम से इन्हें याद करें -----
जो दुआएं देना चाहते हैं वो दुआएं दें और जो बददुआये देना चाहें, उनसे दरख्वास्त है वह ऐसा न करें | ये उनका करम है खुदा उनके इस करम के लिए उनकी जगह खुद देगा |


ये गीत को आप अच्छे से गुनगुना भी सकते हैं :-

तर्ज :- 
 पास बैठो तबियत बहल जायेगी
मौत भी आ गयी हो तो टल जायेगी |
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आओ मिलकर करें बैंक की नौकरी, बुजदिलों के भी दिन खुद ही लद जायेंगे,
खूब लूटा इन्होंने हमें और तुम्हें, पढ़ते-पढ़ते अब कानून कट जायेंगे |

संघ का आफिस समझा है बारात-घर, धोबी आते समय-बद्द अब ज्यूँ घाट पर,
ये सजर ही अगर गिर गया फिर तो क्या, कपडे खुद इनकी जंग में ही फट जायेंगे |

रुख पे मुस्कान जिगर में हैं खंज़र लिए, ये हुनर उनमें पर दिल है बंज़र लिए,
मसला लेवी का हो या हो चंदे का गर, चाक-ए-दिल अपनों का भी वो कर जायेंगे | 

जिंदादिल था हर नेता हुआ जो जुदा, देखो अब अपनी मर्जी का सबका खुदा,
खुद पे इल्जाम सर पे गबन के लिए, वक़्त आया वो इक-इक कर छट जायेंगे | 

उनसे पूछो तो कहते किया हमने क्या, नींव संघ की हिलायी है बस और क्या,
चंद सिक्को की खातिर बिके हैं मगर, बद्दुआओं के कहर से चटक जायेंगे |

सरपरस्ती में अब तुम चलो संग-ओ-संग, “वुई बैंकर्स” नया, पर जवानी का संघ,
मर मिटेंगे उलट लेंगे हक अपने सब, लौट कर बंधुआ ज़िन्द को पलट जायेंगे |

हर्ष महाजन

1 comment:

  1. वाह वाह ... क्या बात है ... मज़ा आ गया ...

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